Saturday 31 January 2015

रंग दिखाती है जिंदगी



कैसे-कैसे रंग दिखाती है जिंदगी
कभी हंसाती कभी रुलाती है जिंदगी

सफ़र ये कैसा है रूह भी थकने लगी
मील के पत्थरों से टिककर हांफती है जिंदगी

नींद के आगोश में कोई जाए कब तक
एक आहट से सहमकर जागती है जिंदगी

दुश्वारियों के बियाबां में घिरने लगे
बंद दरवाजों से सहमकर झांकती है जिंदगी

च्ची नींद में ज्यों ख्वाब सताने लगे
किस बहाने आँखों में झांकती है जिंदगी

उसकी चाल से चाल न मिला पाया कभी
‘राजीव’ रेस के घोड़े सी भागती है जिंदगी 


23 comments:

  1. सार्थक प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (01-02-2015) को "जिन्दगी की जंग में" (चर्चा-1876) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर आभार ! आ. शास्त्री जी.

      Delete
  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  5. बहुत उम्दा , जीवन हर रंग लिये है

    ReplyDelete
  6. उसकी चाल से चाल न मिला पाया कभी
    ‘राजीव’ रेस के घोड़े सी भागती है जिंदगी ...
    सच कहा अहि ... कई बार मुश्किल हो जाता है कदम ताल करना जिंदगी के साथ ... सभी शेर लाजवाब ...

    ReplyDelete
  7. कैसे-कैसे रंग दिखाती है जिंदगी
    कभी हंसाती कभी रुलाती है जिंदगी
    यहीं हैं जिंदगी........
    http://savanxxx.blogspot.in

    ReplyDelete
  8. ये जिंदगी..वो जिंदगी...कई रंग है जिंदगी के.;बहुत सुंदर लि‍खा

    ReplyDelete
  9. घोड़े सी भागती है जिंदगी, बहुत खूब

    ReplyDelete
  10. बहुरंगी,बहुरूपी जिंदगी ..बहुत सुन्दर ग़ज़ल

    ReplyDelete
  11. जिन्दगी क्या-क्या रंग दिखाती है कितना सत्य लिखा है आपने ,बहुत बढियाँ

    ReplyDelete
  12. कभी गुलजार तो कभी बेजार लगती है ये जिंदगी !
    बहुत सार्थक रचना है !

    ReplyDelete
  13. दुश्वारियों के बियाबां में घिरने लगे
    बंद दरवाजों से सहमकर झांकती है जिंदगी

    कच्ची नींद में ज्यों ख्वाब सताने लगे
    किस बहाने आँखों में झांकती है जिंदगी
    खूबसूरत अलफ़ाज़ श्री राजीव जी

    ReplyDelete
  14. जिंदगी का सफर है ही ऐसा। कभी हमें रूलाता है, तो कभी हंसाता। कभी दर्द दे जाता है, तो कभी ख्‍ुाशियों से झोली भर जाता है। लाजवाब कविता। मुझे बहुत अच्‍छी लगी। टिप्‍पणी करने के लिए धन्‍यवाद। मेरी भी नई पोस्‍ट आपका इंतजार कर रही हैं।

    ReplyDelete
  15. बहुत सुंदर और भावमय अभिव्यक्ति...

    ReplyDelete

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...